kuchh aur gulab

धोखा कहें, फरेब कहें, हादसा कहें
इस ज़िंदगी को क्या न कहें, और क्या कहें !

कहने से बेवफ़ा तो बुरा मानते हो तुम
अब तुमको बेवफ़ा न कहें, और क्या कहें !

ख़ुद बेहिसाब, हमसे हरेक बात का हिसाब
तुमको अगर ख़ुदा न कहें और क्या कहें !

कहते हैं वे कि बाग़ में पतझड़ है अब, गुलाब !
हम तुमको ‘अलविदा’ न कहें और क्या कहें !