kuchh aur gulab

परदेदारी भी, बेहिजाबी भी
ख़त है सादा तेरा, जवाबी भी

सुबह को और शाम को कुछ और
हम नमाज़ी भी हैं, शराबी भी

दिल का ऐसा है एक मुक़ाम जहाँ
काम आती न क़ामयाबी भी

यों तो मिलता है अजनबी-सा कोई
रंग आँखों का है गुलाबी भी

ले उड़ी दूर तक हवायें गुलाब
गंध पत्तों ने लाख दाबी भी