kuchh aur gulab

प्यार की बात भी भारी है, इसे कुछ न कहो
ज़िंदगी दर्द की मारी है, इसे कुछ न कहो

चैन आया न घड़ी भर भी हमारे दिल को
अब किसी और की बारी है, इसे कुछ न कहो

आज दुलहन को बुलावा है घर पे साजन के
माँग सखियों ने सँवारी है, इसे कुछ न कहो

भाँवरे यों तो हज़ारों के साथ भरती रही
ज़िंदगी अब भी कुँवारी है, इसे कुछ न कहो

उठ न बैठें, अभी रोते हुए सोये हैं गुलाब
रात किस तरह गुज़ारी है, इसे कुछ न कहो