kuchh aur gulab

बनके दीवाना न यों महफ़िल में आना चाहिए
कुछ तो लेकिन उनसे मिलने का बहाना चाहिए

कोई पहचाना हुआ चेहरा नहीं है भीड़ में
अब हमें भी अपने घर को लौट जाना चाहिए

दर्द पहले दर्द है फिर और चाहे कुछ भी हो
दर्द को ऐसे नहीं हँसकर उड़ाना चाहिए

दो न मंज़िल का पता हमको, मगर यह तो कहो
क्या न तुमको पास आकर मुस्कुराना चाहिए !

रंग लाया है तेरा ग़ज़लों में बँध जाना, गुलाब !
कह रहे हैं वे, इन्हें होंठों पे लाना चाहिए