kuchh aur gulab
मिलना न अब हमारा हो भी अगर, तो क्या है !
यह प्यार बेसहारा हो भी अगर, तो क्या है !
जब नाव लेके निकले, तूफ़ान का डर कैसा !
कुछ और तेज़ धारा हो भी अगर, तो क्या है !
हम जिनके लिये जूझे लहरों से, जब न वे ही
नज़रों में अब किनारा हो भी अगर, तो क्या है !
ये प्यारभरी रातें, ये दिल कहाँ मिलेंगे !
यह ज़िंदगी दोबारा हो भी अगर, तो क्या है !
बेआस चलते-चलते, राही तो थकके सोया
मंज़िल का अब इशारा हो भी अगर, तो क्या है !
दिल में तो हमेशा तू रहता है, गुलाब! उनके
घर छोड़के आवारा हो भी अगर, तो क्या है !