kuchh aur gulab

मुँह खोलके हमसे जो मिलते न बना होता
कुछ तुमने निगाहों से कह भी तो दिया होता !

कोई न अगर दिल के परदे में छिपा होता
यों किसने ख़यालों को रंगीन किया होता !

क्या हमसे छिपी रहती जो बात थी उस दिल में
परदा तो मगर अपनी आँखों से हटा होता !

राहें थी अलग तो क्या, हम मिल तो कभी जाते !
कुछ तुमने कहा होता, कुछ हमने कहा होता !

जो पूछ भी लेते तुम उड़ती हुई नज़रों से
क्यों रूठके यों कोई दुनिया से गया होता !

इन शोख़ अदाओं का सब खेल हमीं से है
होते न अगर हम तो क्या इनका हुआ होता !

वैसे तो, गुलाब ! उनका इस बाग़ पे कब्ज़ा है
हम देखते ख़ुशबू को रुकने को कहा होता