kuchh aur gulab

मेरी आँखों में जब तक नमी है
तेरी महफ़िल तभी तक जमी है

जो पराई जलन से न तड़पे
आदमी वह कोई आदमी है !

आज उन सुर्ख होंठों की फड़कन
एक अहम बात पर आ थमी है

प्यार कम तो नहीं है उधर भी
देखनेवाले ! तुझमें कमी है

रंग अच्छा, गुलाब ! आपका हो
रंग पर यह महज़ मौसमी है