kuchh aur gulab

यों तो अनजान लगता रहे
प्यार भी दिल में जगता रहे

कैसा दुश्मन कि सर काट ले
और प्यारा भी लगता रहे !

हम तो मरते हैं इस झूठ पर
उम्र भर कोई छलता रहे

ख़ून का ही हमारे क़सूर
हाथ क्यों उनके रँगता रहे

कोई आयेगा तड़के, गुलाब!
दिल से कह दो कि जगता रहे