kuchh aur gulab

यों तो हमसे न कोई बात छिपायी जाती
पर नज़र उनकी नज़र से न मिलायी जाती

उड़के ख़ुशबू तेरे जूड़े की तो आयी हरदम
लाख हमसे तेरी सूरत थी छिपायी जाती

सैकड़ों प्यार की दुनिया तबाह करके ही
एक इन्सान की तक़दीर बनायी जाती

तुझसे मिलकर तो बढ़ी है ये जलन, तू ही बता–
‘और किस तरह लगी दिल की बुझाई जाती !’

ख़ून जब अपने कलेजे का बहाते हैं गुलाब
पंखड़ी तब तेरे चरणों पे चढ़ाई जाती