kuchh aur gulab

वीणा को यों तो हाथ में थामे हुए हैं हम
फिर भी सुना के मौन सभा में हुए हैं हम

है प्यार यह न खेल ही फूलों का जान लें
मुट्ठी में कसके आग को थामे हुए हैं हम

जो देखते नहीं हैं पलटकर हमारी ओर
क्या-क्या न उनकी एक अदा से हुए हैं हम !

एक जान के दुश्मन को बनाया है दिल का दोस्त
बुझते दिये को लेके हवा में हुए हैं हम

जिस पर नज़र पड़ी न बहारों की आज तक
ऐसे भी एक गुलाब ‘गया’ में हुए हैं हम