kuchh aur gulab
सही है, ठीक है, हमने ये ग़म सहे ही नहीं
कहें भी क्या कि जो कहने को कुछ रहे ही नहीं
मिले तो यों कि कोई दूसरा सहा न गया
गये तो ऐसे कि जैसे कभी रहे ही नहीं
हज़ार दर्द हों दिल में सुनेगा कौन, गुलाब!
तुम्हारी आँख से आँसू अगर बहे ही नहीं