kumkum ke chhinte

मृत्युदंड

हम सब मृत्यु की सजा पाये हुए कैदी हैं,
हमें वध-स्थान की ओर ले जाया जा रहा है
धीरे, धीरे, धीरे।

हमारी ग्रीवा के चारों ओर
एक रेशमी फंदा घिरा है,
किसी निष्ठुर वधिक के हाथों में जिसका
दूसरा अनदेखा सिरा है।

हमारी मृत्यु की घड़ी निश्चित हैं,
दिन, वार, पक्ष, मास, संवत्‌,
न तिल भर बढ़ना है, न जौ भर घटना,
अटल है विदाई का वह मुहूरत।
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि हम अभी खिले नहीं हैं,
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि हम एक-दूसरे से
अभी खुलकर-मिले नहीं हैं,
हँसकर या रोकर,
पाकर या खोकर,
फूले, अनफूले,
अपनी-अपनी बारी में सभी
इस फाँसी के फंदे पर झूले।

हम सब मृत्यु की सजा पाये हुए कैदी हैं,
हमें वध-स्थान की ओर ले जाया जा रहा हैं
धीरे, धीरे, धीरे।

1970