mere bharat mere swadesh

मेरे भारत मेरे स्वदेश

मेरे भारत, मेरे स्वदेश

तू चिर प्रशान्त, तू चिर अजेय,
सुरमुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय,
हे सगुण ब्रह्म वेदादि गेय !

हे चिर अनादि, हे चिर अशेष

गीता-गायत्री के प्रदेश !
सीता-सावित्री के प्रदेश !
गंगा-यमुनोत्री के प्रदेश !

हे आर्य – धरित्री के प्रदेश !

तू राम-कृष्ण की मातृ-भूमि
सौमित्र भरत की भ्रातृ-भूमि
जीवन-दात्री, भव-धातृ भूमि

तुझको प्रणाम, हे पुण्य – वेश !

धूसर तेरा हिम-शुभ्र भाल
सिंहों के गढ़, पैठे श्रृगाल
असि उठा भवानी की कराल,

उठ, जगा, सो रहे क्‍यों महेश!

लक्ष्मण – रेखा कर चुका पार
दशशीश, बीस-भुज महाकार
सीता भीता करती पुकार,

‘हे राम, कहाँ रघुकुल दिनेश !’

है आज मानसर काक – भुंज
कैलास रहे भर असुर – पुंज
अहि-भेक-मलिन नंदन-निकुंज

अलका में फिरते श्वान – मेष

तेरे गांडीव – पिनाक कहाँ ?
शर, जिनसे सृष्टि अवाक् कहाँ ?
धँस जाय धरा, वह धाक कहाँ ?

ओ साधक ! कर नयनोन्मेष !

तू विश्व-सभ्यता-शक्ति-केंद्र
तुझमें विलीन शत-शत महेंद्र
नत विश्व – विजेता अलक्षेन्द्र

तेरी सीमा में कर प्रवेश

तू मिटा न, शत साम्राज्य मिटे
कितने मंगोली राज्य मिटे
सीमान्त युगल अविभाज्य मिटे

मिट सकी न तेरी विभा लेश

द्वादश रवि तेरी भृकुटि क्रुद्ध
तू काल – रूप हनुमत प्रबुद्ध
कर आज शान्ति के लिए युद्ध

उठ जाग, जाग, ओ सुप्त शेष !

दे मसल, बढ़े जो चरण क्रूर
कर दे मतंग – मद चूर – चूर
हिमगिरि क्या, उत्तर ध्रुव सदूर

तेरी ध्रुव – सीमा हो अशेष

शत कोटि भुजाएँ आज चपल
शत कोटि चरण चिर अडिग अटल
हे अमर शक्ति के स्रोत सबल

तू चिर – विमुक्त हे मुक्त – केश
मेरे भारत, मेरे स्वदेश

1962