mere bharat mere swadesh

हमने बचपन से चीनी के देखे बहुत खिलौने हैं

सुप्त सिंह के मस्तक पर चूहे ने चरण चढ़ाया है
आज हिमालय के देवालय में श्रूगाल घुस आया है
रवि के ज्योतिर्मम आनन पर पड़ी राहु की छाया है
चली सत्य से लोहा लेने, छल, प्रवंचना, माया है

बंधु-भाव दिखला जिसने पहले तिब्बत की भू छीनी
बढ़ा लीलने फिर विषधर-सा हिम-शिखरों की रंगीनी
भुला-निखिल प्राचीन सभ्यता, सीख, शांति-रस की भीनी
गुरु को गुड़ कह, आज वही चेला बनने आया चीनी

आया है तो अब थोड़ा पीले गंगा का पानी तू
भारत की मृत्तिका सूँघ ले राम नाम अभिमानी तू
सोये ज्वालामुखियों पर करता आया मनमानी तू
महानाश की फसल काट अब सुन विनाश की वाणी तू

सुन, समवेत स्वरों में उठ क्या भारत सारा कहता है
अत्याचारी का उन्मूलन धर्म हमारा कहता है
धूमकेतु ! तू ठीक स्वयं को लाल सितारा कहता है
आज तुझे जग शांति सभ्यता का हत्यारा कहता है

यह धरती है रामकृष्ण की, भीमार्जुन-से वीरों की
अब भी छायी स्वर्गलोक तक चर्चा जिनके तीरों की
तिब्बत का न पठार, चाँग की फौज न यह शहतीरों की
अरे, हटा ले पाँव, भूमि यह हिमगिरि के प्राचीरों की

यह परिवेश समुद्रगुप्त का, यह शकारि का साका है
राणा का चित्तौड़ लड़ाका, गढ़ यह वीर शिवा का है
गुरु गोविन्द सिंह का प्यारा, यह रण-मंदिर बाँका है
यह सुभाष की स्वर्ण-कीर्ति, गांधी की विजय-पताका है

शांत, सहिष्णु देश यह जितना, उतना उग्र, प्रबल भी हैं
हिमगिरि में शीतलता जितनी उतना तरल अनल भी है
तू समुद्र तो हम अगस्त्य, शिव हम तू अगर गरल भी है
ब्रह्मपुत्र का जल यह तेरी जन-संख्या का हल भी है

सिंहों की यह माँद कि जिसमें घुस आये मृगछौने हैं
आज चाँद को छूने आये बाँह उठाये बौने हैं
हिम की चट्टानों के नीचे, आ जा, बिछे बिछौने हैं
हमने बचपन से चीनी के देखे बहुत खिलौने हैं

1962

(चीन के भारत पर आक्रमण के दिन, 20 अक्तूबर, 1962 को लिखित)