mere bharat mere swadesh
विजय-प्रभात
हिमाद्रि देख डोलते, त्रिनेत्र नेत्र खोलते
मदांध बीसबाहुको, लिपट स्वशक्ति तोलते
सहस्र उर ऊबल पड़े, सहस्र पग मचल पड़े
समोद द्वार-द्वार से, सहस्र वीर चल पड़े
उठा प्रसुप्त देश था, प्रमाद का न लेश था
उठे नराच राम के कि रूद्र कुद्धवेश था
अपार सैन्य रावणी, विकीर्ण वारिवाह-सी
बढ़े सपूत देश के, अदम्य शूर, साहसी
उदग्र श्रृंग-शृंग से, उठी लपट भयावही
अराति-चिन्ह भाल से, मिटा चली मही-मही
उठा सदंभ शत्रुशीश भूमिसात् हो गया
धुली कलंक-कालिमा, विजय-प्रभात हो गया
1962