meri urdu ghazalen
दोनों ही अपने आप में है मुब्तिला से हम
मुमकिन नहीं, टलें वे जफ़ा से, वफ़ा से हम
हर साँस चुकाती जिसे गिन-गिनके रात-दिन
क्या ज़िंदगी उधार थे लाये क़जा से हम !
शेरों की धुन ने इस क़दर बेचैन कर दिया,
आ पहुँचे शेरघाटी में चलकर गया से हम
लूटा था दिल इन्होंने, जान उसने छीन ली,
नाराज हैं बुतों से, ख़फ़ा हैं ख़ुदा से हम
(अपने नगर गया से चलकर शेरघाटी नगर के मुशायरे में हम शरीक हुए थे।)