meri urdu ghazalen

बुझना ही जब रात में, ऐसे नही ऐसे
क्या है दियों की पाँत में, ऐसे नही ऐसे

उस शह का क्या जवाब जो नज़रों से लग गयी
अब क्या कसर है मात में, ऐसे नहीं ऐसे

मिट्टी के घरौंदे को बचाते भी कितनी देर!
ढह ही गया बरसात में, ऐसे नहीं ऐसे

अब तो चलाचली है, गले लग भी जाइए
क्यों देर हो इस बात में, ऐसे नही ऐसे !

लायें है उनको खींचकर काँटे तेरे, गुलाब
आ ही गये हैं घात में, ऐसे नही ऐसे