meri urdu ghazalen
मुझको दम भर भी तेरे कूचे में आराम नहीं
दिन नहीं, रात नहीं, सुबह नहीं, शाम नहीं
एक ठोकर भी लगी, आँख से निकले आँसू
चल कहीं और, ऐ दिल !, तेरा यहाँ काम नहीं
कौन अब कल की तमन्ना में करे नींद हराम !
साहबे-हाल है हम साहबे – अंजाम नहीं
मुझको मरने भी नहीं देता यही एक ख़याल,
नज़ाते-गम से कहीं इश्क़ हो, बदनाम नहीं
ज़िंदगी मौत का पैगाम अगर लायी है
क्या भला मौत में फिर ज़ीस्त का पैगाम नहीं !
नाम जिनका भी यहाँ पर है तेरे नाम से है
नाम जो भूल गये, उनका कहीं नाम नहीं