meri urdu ghazalen

साज़ यों छू कि हरेक तार रगे-जाँ हो जाय
सोजे-दिल इस तरह उभरे कि चिरागाँ हो जाय

यो तड़पने को तो तड़पा ही किए हम दिन-रात
ग़म वही ग़म है जो आलम में नुमायाँ हो जाय

मैं गुलिस्ताँ में भी बैठूँ तो बयावाँ-सा लगे
तुम बयावाँ में भी बैठो तो गुलिस्ताँ हो जाय

मैं कहाँ और कहाँ ये ग़मे-दुनिया के बवाल !
ज़िंदगी है कि हरेक हाल में आसाँ हो जाय

फ़ायदा कुछ नहीं इस इल्मो-हुनर का साक़ी !
जाम उसका है कि तू जिसपे मिहरबाँ हो जाय

हम तेरे इश्क में मर-मरके जिये जाते हैं
उसको मुश्किल नहीं कहते कि जो आसाँ हो जाय