meri urdu ghazalen

हँसी अब उन होंठों पे छाने लगी है
मेरी बेकली याद आने लगी है

सदा कोई तूफान सर पर खड़ा था
ये अब नाव जाकर ठिकाने लगी है

ये माना कि मंज़िल नहीं आख़िरी यह
मगर चाल क्यों लड़खड़ाने लगी है !

गुलाब आप भी अपनी नज़रें झुका लें
बहार अपना घूँघट गिराने लगी है