meri urdu ghazalen

कितना है, चर्ख हमपे मिहरवाँ, न पूछिए
बिजली में बन गया है आशियाँ, न पूछिए

किरनों को देख शबनमी कलियों पे सुबह को
मोती समझ गिरी जो तितलियाँ, न पूछिए

महदूद मौत तक ही नहीं दौरे-ज़िंदगी,
यह राज़ मगर हजरते इंशाँ, न पूछिए

लगता था हर घड़ी कि क़यामत है, इसके बाद
कटती थी किस तरह शबे-हिज्राँ, न पूछिए

रुख़ से हटा नक़ाब जो आये वे बाम पर
क्या हो रहा है हाले-गुलिस्ताँ, न पूछिए