meri urdu ghazalen
जमीं पर लालो-रू, महताब ज़ेरे-आसमाँ निकला
तेरा रुख़सार गुलशन के हरेक गुल में निहाँ निकला
न कोई हमनशी निकला, न कोई हाले-जाँ निकला,
जहाँ में जो भी निकला, अपनी गर्दिश में रवाँ निकला
हुई रुख़सत जवानी, जोशे-उल्फत पर कहाँ निकला
गुबारे-दिल नहीं निकला गुबारे-कारवाँ निकला
ख़ुदी को छोड़ते ही कुल ख़ुदाई हो गई मेरी,
जहाँ सिजदा किया मैंने, वहीं उसका मकाँ निकला
बहार आई है चमने-हिंद में, हर दिल चहकता है,
शहीदाने-वतन का ख़ून आख़िर गुलफिशाँ निकला