nao sindhu mein chhodi
कौन पीड़ा को सुर में गाता
चला जा रहा है पग-पग पर सौ-सौ फूल खिलाता ?
बढ़ता ही जाता सन्नाटा
उसका दुख न किसीने बाँटा
जब-जब चुभता कोई काँटा
राग तेज हो जाता
आशा और अपेक्षा त्यागे
बढ़ता वह आगे ही आगे
जो कुछ भी मिलता बेमाँगे
सादर शीश लगाता
‘क्या दुख है इस प्रेमातुर में?
यह क्रंदन कैसा है सुर में?
क्या अवसाद भरा है उर में?!
कोई समझ न पाता
कौन पीड़ा को सुर में गाता
चला जा रहा है पग-पग पर सौ-सौ फूल खिलाता ?