nao sindhu mein chhodi

जब मैं सोते से जागूँगा
तब भी क्या तुझसे ये खेल-खिलौने ही माँगूँगा!

भोगों की तृष्णा में भटका
आज त्रिशंकु-सदृश जो लटका
तब भी श्वान बना मरघट का

इधर-उधर भागूँगा

मन तब तेरा ध्यान करेगा
सुधा-कलश नभ से उतरेगा
मैं न मरूँगा, काल मरेगा

सुख से तन त्यागूँगा

जब मैं सोते से जागूँगा
तब भी क्या तुझसे ये खेल-खिलौने ही माँगूँगा!