nao sindhu mein chhodi

सपने क्या-क्या नहीं दिखाते!
जो सोचां-अनसोचा मन में, पल में सम्मुख लाते

जब करतल-से द्वार जुड़ गये
अश्रु-सजल दो नयन मुड़ गये
ये अनंत की ओर उड़ गये

मन की व्यथा छिपाते

अब अदृश्य से निकल-निकल कर
अगणित रूपों में ढल-ढलकर
स्मृति के छायापथ से चलकर

फिर नयनों तक आते

क्या होनी-अनहोनी इनमें
देश-काल का भेद न जिनमें!
तारे चमका देते दिन में

जल में आग लगाते

सपने क्या-क्या नहीं दिखाते !
जो सोचा-अनसोचा मन में, पल में सम्मुख लाते