naye prabhat ki angdaiyiyan

गति

तत्त्वविदों ने ब्रह्म को अंतिम पदार्थ के रूप में
स्वीकार किया है,
पर ‘नेति’, ‘नेति’ कहकर
उसका स्वरूप बताने से सदा इन्कार किया है।
मेरी समझ में तो
गति ही सत्ता की एकमात्र स्थिति है,
गति ही उसका आदि है,
गति ही उसकी इति है।
देश और काल तो
हमें इस गति का बोध भर कराते हैं,
वे हमारे मन के काल्पनिक आयाम मात्र हैं
जो इस चिरंतन सत्य को
हमारे अनुभव में खींच लाते हैं।
और हमारा यह जीवन भी तो
एक अंतहीन यात्रा है,
एक विरामहीन गति है,
एक चक्राकार घूमती रेखा ही
हमारा वास्तविक परिचय है,
हमारी नियति है।

1983