naye prabhat ki angdaiyiyan
पुराने देवता
वे पुराने देवता कहाँ हैं जो कभी हम पर शासन करते थे!
पृथ्वी तो चप्पे-चप्पे छान ही ली,
हमने अंतरिक्ष भी नहीं छोड़ा है
जिन-जिन नाम-रूपों में उन्हें पुकारा गया था,
उन सभी को एक-एक कर झिंझोड़ा है
किंतु अब तो वे आकाश में भी नहीं दिखते,
सुना है, कभी पृथ्वी पर भी उतरते थे
चाँद-सूरज और ये ग्रह जो हमें घेरे हैं
चुंबकीय नाभिवाले यंत्र ही तो हैं,
स्वयं भी किन्हीं अटल नियमों से बँधे हुए.
सभी चेतनाशून्य परतंत्र ही तो हैं,
कैसे भोले-भाले लोग थे जो इन्हें पूजा करते थे
बच्चों की तरह मन-ही-मन इनसे डरते थे!
एक बार हमारे मनोराज्य से निकलकर
पता नहीं अब वे देवता कहाँ दुबके पड़े हैं!
इंद्र की अमरावती हो या कुबेर की अलकापुरी
सभी पर मानव के विजय-केतु गड़े हैं!
अब हम स्वच्छंद वहाँ विचरण करते हैं
जहाँ पहले फरिश्ते भी पाँव नहीं धरते थे!
वे पुराने देवता कहाँ हैं जो कभी हम पर शासन करते थे!
1983