pankhuriyan gulab ki

हमसे यह बीच का परदा भी हटाया न गया
उनको बढ़कर कभी सीने से लगाया न गया

इसपे मचले थे कि देखेंगे तड़पना दिल का
उनसे देखा न गया, हमसे दिखाया न गया

कुछ इस तरह थी नज़र, रात, हमारी बेताब
उनसे छिपते न बना, सामने आया न गया

दर्द वह दिल को मिला, उम्र की हद तक हमसे
चुप भी रहते न बना, कहके बताया न गया

यों तो खिलने को नये रोज़ ही खिलते हैं गुलाब
पर ये अंदाज़ किसी और में पाया न गया