pankhuriyan gulab ki
हम खोज में उनकी रहते हैं, वे हमसे किनारा करते हैं
फूलों में हँसा करते हैं कभी पत्तों में इशारा करते हैं
बिछड़े हुए राही मिल न सके, आख़िर हम भीड़ में खो ही गये
दिल उनको पुकारा करता है, हम दिल को पुकारा करते हैं
बिस्तर पे सिकंदर को देखा मरते तो कोई यों बोल उठा–
‘दुनिया को हरानेवाले भी तक़दीर से हारा करते हैं’
इस दौर का हर पीनेवाला फिरता है तलाश में प्याले की
एक हम हैं कि प्याला हाथ में ले, ख़ुद को ही पुकारा करते हैं
काँटों की चुभन में भी हरदम देखा है गुलाब को हँसते ही
सोचा भी कभी, किस हाल में वे दिन अपने गुज़ारा करते हैं !