pankhuriyan gulab ki

कभी पास आ रही है, कभी दूर जा रही है
ये नज़र है प्यार की जो मुझे आजमा रही है

ये घुटा-घुटा-सा मौसम, ये रुकी-रुकी हवायें
मेरे पास बैठ जाओ, मुझे नींद आ रही है

कभी बाग़ में खिलेंगे, जो गुलाब भी हज़ारों
ये महक कहाँ मिलेगी जो ग़ज़ल में छा रही है !