pankhuriyan gulab ki

पँखुरियाँ गुलाब की, नम न हो तो क्या करें !
कुछ उधर भी प्यार के ग़म न हों तो क्या करें !

कैसे अजनबी बने, हमसे पूछते हैं वे —
‘अब भी तेरी तड़पनें कम न हों तो क्या करें !’

हम इधर हैं बेक़रार, है उधर भी इंतज़ार
पर नज़र के फ़ासले कम न हो तो क्या करें !

प्यार यह हमारे ही दिल का हो वहम नहीं
धड़कनों में आपकी, हम न हो तो क्या करें !

जब कहा — ‘गुलाब को चलके देख लीजिए’
बोले– ‘आख़िरी है अब, दम न हो तो क्या करें !’