pankhuriyan gulab ki

बहुत हमने चाहा कि दिल भूल जाये
मगर तुम भुलाने में भी याद आये

किसी मोड़ पर ज़िंदगी आ गयी थी
बढ़ा कारवाँ और हम रुक न पाये

नहीं उनको दिल से भुलाया है हमने
कई बार यों तो क़दम डगमगाये

कभी जो मिलें फिर तो पहचान लेना
नहीं तुमसे हम आज भी हैं पराये

तुम्हारी ही यादों की लौ जल रही थी
दिवाली के जब भी दिये जगमगाये

कभी अपने हाथों सँवारा था तुमने
गुलाब आज तक वैसे खिल ही न पाये