pankhuriyan gulab ki
बस नज़र का तेरी अंदाज़ बदल जाता है
सुर तो रहते हैं वही, साज़ बदल जाता है
कुछ तो कहता है कोई आँखों-ही-आँखों में, मगर
बात-ही-बात में वह राज़ बदल जाता है
कौन होता है बुरे वक़्त में साथी किसका !
आईना भी ये दग़ाबाज़ बदल जाता है
लीजिए ज़ब्त किया हमने, मगर मुँह का रंग
क्या करें, सुन के जो आवाज़, बदल जाता है !
आज तुझसे वे निगाहें भी मिल रही हों, गुलाब !
उनके मिलने का तो अंदाज़ बदल जाता है