pankhuriyan gulab ki
बहकी हुई है चाल, कोई देखता न हो
ऐसा हमारा हाल, कोई देखता न हो
हम चाहते हैं प्यार तेरा देख ले दुनिया
यह भी है पर ख़याल, कोई देखता न हो
क्या तू न ख़ुद को भी था दिखाने को बेक़रार !
तब क्यों है यह ख़याल– ‘कोई देखता न हो !’
दम भर कहीं नज़र जो उलझ ही गयी तो क्या !
दिल को ज़रा सँभाल, कोई देखता न हो
क्यों फूल रहा आप ही अपने में तू, गुलाब !
जब तेरा यह कमाल कोई देखता न हो !