pankhuriyan gulab ki

यों तो हर राह के पत्थर पे सर को मार लिया
नाम तेरा ही मगर हमने बार-बार लिया

जब किसी और ने मुड़कर भी न देखा इस ओर
हमने धीरे-से तुझे दिल में तब पुकार लिया

हमने जिस ओर भी रक्खे थे बेसुधी में क़दम
तूने उस ओर ही मंज़िल का रुख़ सुधार लिया

यों तो गुज़रे हैं इन आँखों से हसीन एक-से-एक
और ही था कोई दिल में जिसे उतार लिया

यह तो क़िस्मत न हमारी थी, मिले होते गुलाब
हमने काँटों से ही लेकिन ये घर सँवार लिया