ravindranath:Hindi ke darpan me

असंभव – भालो

यथासाध्य भालो बोले, ‘उगो आसे भालो,
कोन स्वर्गपूरी तूमि करे थाको आलो ?’
आसे-भालो केंदे कहे, ‘आमि थाकि हाय
अकर्मण्य दाम्भिकेर अक्षम ईर्साय’

असंभव – अच्छा

यथासाध्य अच्छा बोला, ‘और अच्छा, भाई !
रहकर किस नंदन में ज्योति जगमगायी ?’
और अच्छा रोकर बोला, ‘हाय, क्या कहूँ !
अकर्मन्य, दम्भी की अक्षम ईर्ष्या में रहूँ’