ravindranath:Hindi ke darpan me

आत्मा की अमरता

राहुर मतन मृत्यू
शूधू फेले छाया
पारे ना करिते ग्रास जीवनेर स्वर्गीय अमृत
जड़ेर कवले
ए कथा निश्चित मने जानि ।

प्रेमेर असीम मूल्य
सम्पूर्ण वंचना करि लवे
हेन दस्यु नाई गुप्त
निखिलेर गुहा-गह्वरेते
ए कथा निश्चित मने जानि ।

सब चेये सत्य करे पेयेछिनू यारे
सब चेये मिथ्या छिलो तारि माझे छद्मवेश धरि,
अस्तित्वेर ए कलंक कभू
सहितो ना विश्वेर विधान
ए कथा निश्चित मने जानि ।

 

आत्मा की अमरता

कितना भी प्रयत्न करे ढँककर इसे मृत्यु अपनी
राहू के समान घनघोर काली छाया से
छीन न सकेगी कभी जीवन का अमृत दिव्य
वह असहाय, जड़, जीर्ण-शीर्ण काया से
यह बात सुनिश्चित मन में जानता हूँ

सामर्थ्य नहीं है किसी में भी जो प्रेम के
चिर-अमूल्य इस अमृत-कण को नष्ट कर सके
छले या चुरा ले इसे, दस्यु नहीं ऐसा कोई
अम्बर में, भूमि पर, विवर में सिन्धुतल के
यह बात सुनिश्चित मन में जानता हूँ

पाया जिसे सब से अधिक सत्य समझ जीवन का
क्षद्म वेश में असत्य सब से अधिक था वहीं
लगे अस्तित्व के कृतित्व पर कलंक ऐसा
सृष्टि-रचना में सह्य यह विडंबना नहीं
यह बात सुनिश्चित मन में जानता हूँ

 

सबकिछु चलियाछे निरंतर परिवर्तवेगे
सेई तो कालेर धर्म ।
मृत्यु देखा देय एसे एकान्तेई अपरिवर्तने,
ए विश्वे ताई से सत्य नहे
ए कथा निश्चित मने जानि ।

विश्वेरे ये जेनेछिलो आछे ब’ले
सेई तार आमि
अस्तित्वेर साक्षी सेई
परम आमिर सत्ये सत्य तार
ए कथा निश्चित मने जानि ।

 

हो रहे हैं यहाँ परिर्वर्तित सभी क्षण-क्षण में
धर्म है, नियम है अटल यही काल का
संभव नहीं, मृत्यु ही अपरिवर्तित हो एक यहाँ
जीवन सदा को रहे ग्रास उसके गाल का
यह बात सुनिश्चित मन में जानता हूँ

साक्ष्य देकर ही जिसका विश्व को चिन्हाया जाये
‘मैं’ यह कभी विश्व-निर्माता से न न्यारा है
चरम अस्तित्व सत्य का भी इसी ‘मैं’ से जुड़ा
शाश्वत यह जड़ता के तिमिर से नहीं हारा है
यह बात सुनिश्चित मन में जानता हूँ