ret par chamakti maniyan

सूरज, चाँद और तारे ही नहीं
यह निखिल ब्रह्मांड
निरंतर एक गोल घेरे में घूम रहा है।
अपनी पूँछ को मुँह में दबाये
काल-सर्प किसी अज्ञात वीणा की धुन पर
झूम रहा है।