sab kuchh krishnarpanam

अब तो चलने के दिन आये
सब को राम-राम करते हैं दोनों हाथ उठाये

घिरता है तूफान, न जाने किसे कहाँ ले जाये !
यही बहुत है, इतने दिन हम साथ-साथ रह पाये

नदी-नाव संयोग हुआ था, अपने थे न पराये
प्रेम-पाश में बाँध किसी ने ये सब नाच नचाये

समझे जो जिसका जी चाहे, कहे जिसे जो भाये
निंदा-स्तुति से परे आज हम, यह जग क्या भरमाये !

हों गुलाब में रँग न अब वे, गये, जहाँ से आये
पर उसकी ख़ुशबू न मिटेगी, कोई लाख मिटाये

अब तो चलने के दिन आये
सब को राम-राम करते हैं दोनों हाथ उठाये