sab kuchh krishnarpanam

फूल गुलाब के
कुम्हला ही जायेंगे एक दिन
कितना भी रख लो इन्हें आँचल में दाब के

यह भी क्‍या कम है
सभी बाधा-विघ्न पार कर
पहुँच सके हैं जो तुम्हारे मणि-द्वार पर
उड़ते कुछ पृष्ठ मेरे जीवन की किताब के

फूलों की हँसी तो
घड़ी-दो-घड़ी ठहरती है
दुनिया जाने के बाद किसे याद करती है!
मुझमें ही पर क्‍या लगे हैं सुर्खाब के!

फूल गुलाब के
कुम्हला ही जायेंगे एक दिन
कितना भी रख लो इन्हें आँचल में दाब के

मई 85