sab kuchh krishnarpanam

फूल बसंत के
आये ज्यों पाहुन दिवस-अंत के

हिम की-सी जड़ता थी मन में
सोचा भी नहीं था
कभी लौटेंगे जीवन में
बंधु गये पार जो दिगंत के

अंग-अंग सतरंगे गहने हैं
धरती ने फिर से नये
हरित वस्त्र पहने हैं
पाकर पत्र परदेशी कंत के

फूल बसंत के
आये ज्यों पाहुन दिवस-अंत के

अप्रैल 85