sab kuchh krishnarpanam

फूल मुरझा गये देखते-देखते

वे दृगों के चपल तीक्ष्ण शर क्‍या हुए!
वे तरल हास-मुखरित अधर क्‍या हुए!
वे दहकते हुए हिम-शिखर क्‍या हुए।

हम कहाँ आ गये देखते-देखते !

मालती की परत पर परत खुल गयी
कुल सुरभि एक निःश्वास पर तुल गयी
चाँदनी चाँद की बाँह में घुल गयी

स्वप्न छितरा गये देखते-देखते

खो गयीं शून्य में धड़कनें प्यार की
स्निग्ध रातें मधुर मान-मनुहार की
जीत में थी छिपी भूमिका हार की

मात हम खा गये देखते-देखते
फूल मुरझा गये देखते-देखते