sab kuchh krishnarpanam

फूल मुरझाने लगा है
नम हवा का सर्द झोंका डाल पर आने लगा है

उड़ गया है रंग गालों का
त्वचा ढीली पड़ी है
अब कहाँ लावण्य वह!
स्मिति की चमक पीली पड़ी है
तितलियों का झुंड भी मुँह फेरकर जाने लगा है

रूप पायेगा नया, सच है
समा कर मृत्तिका में
चाहता है पर, रहो तुम
शेष पल तक, बाँह थामे
चिर-विरह की कल्पना से ह्रदय अकुलाने लगा है

फूल मुरझाने लगा है
नम हवा का सर्द झोंका डाल पर आने लगा है