sab kuchh krishnarpanam
यदि मैं तुम्हें भूल भी जाऊँ लहरों की हलचल में
तो भी छोड़ न देना मुझको मेरे नाथ! अतल में
धीरे-धीरे हाथ बढ़ा कर
मुझे खींच लेना तुम बाहर
मिट जाये मिट जाने का डर
जल की उथल-पुथल में
लेना-देना, पाना-खोना
रहे न फिर यह रोना-धोना
सहज-सहज हो, जो है होना
उस अनजाने पल में
यदि मैं तुम्हें भूल भी जाऊँ लहरों की हलचल में
तो भी छोड़ न देना मुझको मेरे नाथ! अतल में