sab kuchh krishnarpanam
हमारा फिर श्रृंगार करो
जो-जो फूल जहाँ से तोड़े, फिर से वहीं धरो
किसने तुम्हें कहा था यह, मोती से माँग भरो !
और भरी ही थी तो उसकी शोभा यों न हरो
नहीं बोलते मत बोलो, क्यों दृग की ओट करो !
लो हम नयन मूँद लेते हैं, पल भर तो ठहरो
छोड़ चले यों ! लोकलाज से कुछ तो, हाय डरो
हुए आप तो मुक्त, हमें कहते हो, ‘जियो, मरो’
हमारा फिर श्रृंगार करो
जो-जो फूल जहाँ से तोड़े, फिर से वहीं धरो