sab kuchh krishnarpanam
इस मधुयामिनी के बाद
क्यों रहे इस भ्रांत, पथभूले पथिक की याद!
दूर से चलकर अचानक
आ गया कब मैं यहाँ तक!
छल गया कब तुम्हें नयनों का तरल उन्माद!
यह उपेक्षा, यह अस्वीकृति
द्विगुणतर कर दे हृदय-रति
प्रगति में खो जाय मेरी नियति का अवसाद
इस मधुयामिनी के बाद
क्यों रहे इस भ्रांत, पथभूले पथिक की याद!