sau gulab khile

आये थे जो बड़े ही ताव के साथ
बह गये वक़्त के बहाव के साथ

बात तो कुछ न हो सकी उनसे
हिचकियाँ बढ़ गयीं दबाव के साथ

उनकी अलकें सँवारते हमने
काट दी ज़िंदगी अभाव के साथ

हम किनारे से दूर जा न सके
एक चितवन बँधी थी नाव के साथ

सर हथेली पे लेके बैठे हैं
कुछ कहे तो कोई लगाव के साथ

हमसे मिलिए तो आईने की तरह
प्यार टिकता नहीं दुराव के साथ

और क्या दाँव पर लगायें अब !
लग चुका सब तो पहले दाँव के साथ

प्यार काँटों में ढूँढ़ते हैं गुलाब
कहाँ जायेंगे इस स्वभाव के साथ !