sau gulab khile

कुछ ऐसे साज़ को हमने बजाके छोड़ दिया
सुरों को और सुरीला बनाके छोड़ दिया

मिलन की प्यास को इतना बढ़ाके छोड़ दिया
कृपा की डोर को छोटा बना के छोड़ दिया

तड़पके आ गयी मंज़िल हमारे पाँव के पास
लगन को इतनी बुलंदी पे लाके छोड़ दिया

बहुत-से ऐसे भी जीवन में आ चुके हैं मोड़
जब उनके नाम को होंठों पे लाके छोड़ दिया

लहर हैं वह जिसे कोई भी किनारा न मिला
वो धुन हैं हम जिसे कोयल ने गाके छोड़ दिया

गुलाब ऐसे ही खिलते हैं अब किसीने ज्यों
दिया जलाके मुक़ाबिल हवा के छोड़ दिया