sau gulab khile

कुछ जगह उनके दिल में पा ही गयी
मैं नहीं तो मेरी कथा ही गयी

उनकी चुप्पी ने हमसे कुछ न कहा
पर कहीं पर तो गुल खिला ही गयी

प्रीत ने पाँव फूँक-फूँक दिये
फिर भी मंज़िल का धोखा खा ही गयी

हम तो ख़ुश हैं कि इस बिगड़ने में
कुछ तो क़िस्मत हमें बना ही गयी

बेबसी उन झुकी निगाहों की
कुछ न कहकर भी कुछ बता ही गयी

हम हज़ारों ही जाल फेंका किये
ज़िंदगी पर नज़र फिरा ही गयी

लाख पत्तों में छिप रहे थे गुलाब
गंध भौंरों को पर बुला ही गयी