sau gulab khile
अपने हाथों से ज़हर भी जो पिलाया होता !
ज़िंदगी ! तूने कभी रुख़ तो मिलाया होता !
हम पलटकर न कभी देखते दुनिया की तरफ़
आपने बीच से परदा तो उठाया होता !
आप सुन लेते कभी अपनी भी धड़कन उसमें
हाथ दिल पर मेरे धीरे से लगाया होता !
या तो दुनिया में बनाया नहीं होता हमको
या बनाकर न कभी ऐसे मिटाया होता !
दिल को देता कोई वह प्यार की धड़कन फिर से
जब हमें आपने आँखों में बिठाया होता
जो न मिलते यहाँ हँसती हुई आँखों से गुलाब
कोई इस बाग़ में रोने भी न आया होता